Tuesday 31 October 2017

पीयूष गोयल एक्सचेंज ऑफ एम्लॉयमेंट- रेलवे का रोज़गार और आंकड़ों का भरमजाल

image तीस दिन में रेल मंत्री पीयूष गोयल के रोज़गार से संबंधित दो बयान आए हैं। 1 अक्तूबर 2017 को छपे बयान में गोयल कहते है कि रेलवे में एक साल के भीतर ही दस लाख रोज़गार पैदा हो सकते हैं। आज यानी 30 अक्तूबर को छपे बयान में अब कह रहे हैं कि रेलवे अगले पांच साल में 150 अरब डॉलर( 9 लाख 70 हज़ार करोड़) के निवेश की योजना बना रहा है, इससे 10 लाख अतिरिक्त रोज़गार पैदा होंगे। image 30 दिन पहले एक साल में दस लाख रोज़गार, तीन दिन में पांच साल में दस लाख रोज़गार। पीयूष गोयल के पास किस कंपनी का कैलकुलेटर है, ये तो पता नहीं मगर उनके बयान को आंख बंद कर छापते रहने वाला मीडिया ज़रूर होगा। पहला बयान विश्व आर्थिक फोरम में दिया और दसरा बयान इकोनोमिक टाइम्स के कार्यक्रम में दिया। पीयूष गोयल 3 सितंबर को रेलवे का पदभार ग्रहण करते हैं, एक महीने के भीतर एक अक्तूबर को एक साल में दस लाख रोज़गार पैदा करने का बयान देते हैं जो 30 अक्तूबर को कुछ और हो जाता है। लगता है कि पीयूष गोयल जी का अपना अलग एम्लॉयमेंट एक्सचेंज खुला है। पीयूष गोयल क़ाबिल कबीना मंत्री बताए जाते हैं। दफ्तर में समाचार एजेंसी एएनआई का वीडियो फीड आता रहता है। आते-जाते आए दिन देखता हूं कि पीयूष गोयल का भाषण स्क्रीन पर आ रहा है। कभी सुना तो नहीं मगर वे काफी तल्लीनता से बोलते नज़र आते हैं। इतने कम समय में रेलवे जैसे महामंत्रालय पर बोलने के लिए इतनी विश्वसनीयता हासिल करना सभी मंत्री के बस की बात नहीं है। 1 अक्तूबर को विश्व आर्थिक फोरम में बोलते हुए पीयूष गोयल ने एक सावधानी बरती थी। उन्होंने कहा था कि मेरा खुद का मानना है कि बेशक ये रेलवे में सीधी नौकरियां नहीं होंगी लेकिन लोगों को जोड़कर और पारिस्थितिकी तंत्र (ECO SYSTEM) के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर एक साल में कम से कम दस लाख रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं। सरकार रेलवे ट्रैक औऱ सुरक्षा रखरखाव पर आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रही है। इनसे अकेले दो लाख रोज़गार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं। यह बयान मैंने हिन्दुस्तान अख़बार की वेबसाइट से लिया है। रेलवे में सीधी नौकरियां नहीं होंगी। उनके बयान के इस हिस्से को याद रखिएगा। image हाल ही में रेलवे ने ट्रैकमैन और इंजीनियरों की 4000 से अधिक बहाली निकाली है। नौजवानों के लिए नहीं, रिटायर लोगों के लिए। बात दस लाख की करते हैं और वैकेंसी 4000 की निकलाते हैं। मई महीने में रेलवे से संबंधित एक ख़बर छपी है हिन्दुस्तान में। आरआरबी एनटीपीसी ने 18,262 पदों की वैकेंसी निकाली। अभ्यर्थी इम्तहान भी दे चुके हैं लेकिन रिज़ल्ट निकालने से पहले पदों की संख्या में चार हज़ार की कटौती कर दी जाती है। इसके तहत पटना, रांची और मुज़फ्फरपुर की सीटें सबसे अधिक घटा दी गईं। एएसम और गुड्स गार्ड के पदों को भी कम किया गया है। इस परीक्षा में 92 लाख छात्र शामिल हुए थे। इस आंकड़े से मैं सन्न रह गया हूं। दिसबंर 2015 में इस परीक्षा का फार्म निकला था, अभी तक इसका अंतिम परिणाम नहीं आया है। आए दिन छात्र मुझे मेसेज करते रहते हैं। 12 दिसंबर 2014 को राज्य सभा में सुरेश प्रभु ने कहा था कि रेलवे में संरक्षा से जुड़े 1 लाख 2 हज़ार पद ख़ाली हैं। इसमें पटरी की निगरानी से जुड़े कर्मचारी भी शामिल हैं। यह ख़बर वार्ता से जारी हुई थी और वेबदुनिया ने छापा था। क्या कोई बता सकता है कि तीन साल में एक लाख से अधिक इन ख़ाली पदों पर कितनी नियुक्तियां हुई हैं? अगर रेलवे की तरफ से ऐसा कोई बयान आया तो ज़रूर अपने लेख में संशोधन करूंगा या नया लेख लिखूंगा। अब आइये निवेश की बात पर। 15 जुलाई 2017 को गांव कनेक्शन में पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु का बयान छपा है कि रेलवे ने पूरा रोडमैप तैयार कर लिया है। पांच साल में पूरा रेल नेटवर्क बदल जाएगा। इसके लिए 8.2 लाख करोड़ के निवेश की ज़रूरत होगी। तीन साल रेलमंत्री बनने के बाद सुरेश प्रभु रोडमैप बनाते हैं और 8.2 लाख करोड़ के निवेश की बात करते हैं। पीयूष गोयल को रेल मंत्री बने तीन महीने भी नहीं हुए और वे 150 अरब डॉलर के निवेश की बात करने लगते हैं। यह उनका नया प्रोजेक्ट है या सुरेश प्रभु के ही प्रोजेक्ट में एक लाख करोड़ और जोड़ दिया है। वो भी इतनी जल्दी ? अब यह कौन बताएगा कि पीयूष गोयल का 150 अरब डॉलर का निवेश, सुरेश प्रभु के रोडमैप का ही हिस्सा है या अलग से कोई रोडमैप है। क्या पुराना रोड मैप कबाड़ में फेंक दिया गया है? उसे तैयार करने में कितनी बैठके हुईं, कितना वक्त लगा और कितना पैसा ख़र्च हुआ,किसी को मालूम है? 02 मार्च 2017 में मैंने अपने ब्लॉग कस्बा पर एक लेख लिखा था। क्या रेलवे में दो लाख नौकरियां कम कर दी गईं हैं? उस दिन के टाइम्स आफ इंडिया के पेज 20 पर प्रदीप ठाकुर की रिपोर्ट छपी थी कि इस बार के बजट में सरकार ने 2 लाख 8000 नौकरियां का प्रावधान किया गया है। इसमें से 80,000 के करीब आयकर विभाग और उत्पाद व शुल्क विभाग में रखे जाएंगे। मेरे पास इसकी जानकारी नहीं है कि इनकी वैंकसी आई है या नहीं, कब आएगी और कब बहाली की प्रक्रिया पूरी होगी। सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में केंद्र सरकार के किस विभाग में कितने पद मंज़ूर हैं और कितने ख़ाली हैं इसे लेकर एक गहन विश्लेषण है। इससे पता चलता है कि राजस्व विभाग में आठ सालों के दौरान यानी 2006 से 2014 के बीच मात्र 25, 070 बहालियां हुई हैं। क्या कोई बता सकता है कि राजस्व विभाग ने एक साल के भीतर 80,000 भर्तियां निकाल दी हैं और नियुक्ति पत्र चले भी गए हैं। टाइम्स आफ इंडिया की इस रिपोर्ट में लिखा है कि बजट के एनेक्स्चर में रेलवे के मैनपावर में 2015 से लेरक 2018 तक कोई बदलाव नहीं है। यानी सरकार ने मैनपावर बढ़ाने का कोई लक्ष्य नहीं रखा है। अखबार ने लिखा है कि 2015 से 18 तक रेलवे का मैनपावर 13, 26, 437 ही रहेगा। 1 जनवरी 2014 को यह संख्या 15 लाख 47 हज़ार थी। बताइये मंज़ूर पदों की संख्या में ही दो लाख से अधिक की कटौती है। पहले पीयूष गोयल बताएं कि क्या मोदी सरकार आने के बाद रेलवे में दो लाख नौकरियों की कटौती की गई है? यदि नहीं तो 2014-17 के बीच कितने रोज़गार दिए गए हैं? यह जानना ज़रूरी है तभी पता चलेगा कि तीन साल में रेलवे ने कितनी नौकरियां दीं और पांच साल में कितनी नौकरिया देने की इसकी क्षमता है। image इसी साल के दूसरे हिस्से में हिन्दुस्तान अखबार में पहले पन्ने पर ख़बर छपी थी। उस दिन किसी अस्पताल में था तो सामने की मेज़ पर पड़े अख़बार की इस ख़बर को क्लिक कर लिया था। ख़बर यह थी कि रेलवे इस साल कराएगा दुनिया की सबसे बड़ी आनलाइन परीक्षा। सितंबर में डेढ़ लाख भर्तियों के लिए अधिसूचना जारी होगी। इस परीक्षा में डेढ़ करोड़ अभ्यर्थी शामिल होंगे। अब इस लेख के ऊपरी हिस्से में जाइये जहां आरआरसी एनटीपीसी की वैकेंसी की बात लिखी है। 18000 पदों के लिए 92 लाख अभ्यर्थी शामिल होते हैं। डेढ़ लाख भर्तियों के लिए मात्र डेढ़ करोड़ ही शामिल होंगे? हिसाब लगाने वाले के पास कोई कैलकुलेटर नहीं है क्या ? या फिर ये सब आंकड़े लोगों की उम्मीदों से खेलने के नए स्कोर बोर्ड बन गए हैं। भारत में पहली बार, दुनिया का सबसे बड़ा, एक लाख करोड़ के निवेश, दस लाख रोज़गार, इस तरह के दावे हेडलाइन लूटने के लिए कर दिए जाते हैं और फिर ग़ायब हो जाते हैं।

हम भारत के हिंसक लोग

भारत की आत्मा भटक रही है। जाने कब उसने स्वर्ण युग देखा लिया था,जिसके लौटा लाने के लिए जब तब कोई घुड़सवार तलवार लेकर आ जाता है और ललकारने लगता है। कोई उस युग में लौटा ले जाने का ख़्वाब दिखाता है तो कोई उस युग को दोबारा क़ायम कर देना चाहता है। इस भटकती हुई आत्मा के पास घोड़ा एक ही है। समय-समय पर घुड़सवार बदल जाते हैं। भारत को इसी भटकती हुई आत्मा की आह लग गई है। जिसके कारण हम और आप हिंसा की बात करने वाले नायकों के पीछे खड़े हो जाते हैं। हम सबको वह स्वर्ण युग चाहिए जो कभी था ही नहीं। भारत के अतीत का आदर्शवाद इतना एकतरफा है, कई बार लगता है कि उस स्वर्ण युग में कभी किसी ने झूठ ही न बोला हो, किसी की हत्या न की हो, कोई प्रपंच न हुआ हो। जो भी था, दैवीय था। ऐसा कालखंड इस धरती पर सिर्फ भारत में ही हुआ और कही नहीं हुआ। अंहिसा की बेहतर समझ के लिए ज़रूरी है कि हम हिंसा को बेहतर तरीके से समझें। हिंसा को लेकर ईमानदार हों।
प्राचीन भारत का महिमामंडन आज तक जारी है। आज़ादी की लड़ाई के दौर में हुआ। वर्तमान इतना खोखला हो चुका था कि अतीत से आत्मबल तलाशने की होड़ सी मच गई । आज़ादी के बाद प्राचीन भारत को समझने के कितने ही गहन प्रयास हुए मगर उन सबको कभी मार्क्सवादी तो कभी राष्ट्रवादी, कभी दक्षिणपंथी तो कभी वामपंथी कह कर ख़ारिज किया जाने लगा। इतिहास की धाराओं का आपसी टकराव धर्म के नाम पर मूर्खतापूर्ण धारणाओं के लिए जगह बनाता रहा। राजनीतिक सत्ता के समर्थन से धर्म का चोला ओढ़े लोग प्राचीन भारत के बारे में कुछ भी एलान कर सकते हैं। उस एलान में अंतिम सत्य होने का दावा भरा रहता है। उसका इतना प्रभाव रहता है कि आप बी डी चट्टोपाध्याय,सुविरा जयसवाल, के एम श्रीमाली , डी एन झा, रामशरण शर्मा,रोमिला थापर, कुमकुम रॉय, कुणाल चक्रवर्ती, नयनजोत लाहिरी, उपिंदर सिंह जैसों को पढ़ने से पहले उन्हें रिजेक्ट करने लगते हैं। वैसे उनका लोहा मानने वाले भी कम नहीं हैं। क्लास रूम में इन्हीं का काम बोलता है।
पोलिटिकल वॉर रूम में इन्हीं को चुनौती दी जाती है। इनके लिखे और इनके दिए संदर्भों को लेकर नहीं बल्कि सरकार के दम पर। इतिहास को पढ़ना हमेशा किसी नतीजे पर पहुँचना नहीं होता है बल्कि उस समय देखना और जानना होता है। पढ़ने से जो बचते हैं वही पढ़े लिखे को सिरे से ख़ारिज कर देते हैं। इन दिनों प्राचीन भारत का आदर्शवाद फिर से थोपा जा रहा है। एक प्रधानमंत्री का उदय हुआ है जो ख़ुद भी और उनके प्रभाव से अन्य जन भी प्लास्टिक सर्जरी से लेकर पुष्पक विमान तक को तमाम वैज्ञानिक खोजों पर थोप देते हैं। प्राचीन भारत की वैज्ञानिकता भी उसी तरह संदिग्ध और अधूरी है जिस तरह प्राचीन भारत के दर्शनों और सामाजिक यर्थाथ का आदर्शवाद, उनका महिमंडन अधूरा है।
आज़ादी की लड़ाई के दौर में गांधी, सावरकर, अंबेडकर, नेहरू सबने प्राचीन भारत से आदर्शवाद उठाया। अपने अपने प्रभावों का विस्तार किया और दुनिया के सामने एक आदर्शवादी प्राचीन भारत की रुपरेखा रखी जिसके गर्भ से अहिंसा, सहिष्णुता का मध निकलता है, जो दुनिया में कहीं और नहीं है। इस बात को लेकर बहस हो सकती है और इसमें दम भी है कि इन सभी की सोच सिर्फ प्राचीन भारत की धाराओं से प्रभावित नहीं थी। पश्चिम की अनेक धाराएं और उस समय का यथार्थ भी इन्हें अहिंसा के तरफ देखने के लिए इशारा कर रही थी।
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इतिहासकार उपिंदर सिंह की एक किताब आई है। उसी के संदर्भ में यह सब बातें कर रहा हूं। किताब का नाम है Political Violence in Ancient India. हावर्ड यूनिवर्सटी प्रेस ने छापी है और 598 पन्नों की इस किताब की कीमत है 45 अमरीकी डॉलर। भारतीय रुपये में कीमत का पता नहीं चल सका। मैं किसी भी किताब के बारे में लिखते समय प्रकाशक, कीमत और पन्नों की संख्या ज़रूर लिखता हूं। ताकि पढ़ने के बाद लोग न पूछें कि कितने की है और कहां से ख़रीदें। इसके बाद भी लोग यह सवाल करते हैं। इस किताब को उसे पढ़ना चाहिए जो हिन्दू मुस्लिम बहस को दूर से देख रहा है। जिसकी प्राचीन भारत में दिलचस्पी है। वो तो कभी नहीं पढ़ेगा जो हिन्दू-मुस्लिम डिबेट सिर्फ एकतरफ़ा मक़सद से करता या करवाता रहता है।
यह किताब प्राचीन भारत में हिंसा और अहिंसा को लेकर विमर्श की जड़ों की तलाश करती है। देखने की कोशिश है कि कब और कहां से अहिंसा के तत्व हावी होने लगते हैं। इसी के साथ उपिंदर सिंह ने हिंसा के तत्वों को भी सामने लाने का प्रयास किया है ताकि हम उस दौर की हिंसा और उसके स्वरूप को समझ सकें। राज्य सत्ता के दायरे में हिंसा का स्वरूप अलग अलग रहा है। किताब का पहला चैप्टर राजगीर और वैशाली से शुरू होता है। मगध की राजधानी राजगीर जो न सिर्फ राजनीतिक सत्ता का केंद्र था बल्कि त्याग और अहिंसा पर ज़ोर देने वाले विचारकों का भी गढ़ रहा है। हम कम ही बात करते हैं कि शुरूआती दिनों में पुत्र ने कुर्सी के लिए पिता की हत्या तक की है। बिंबसार की हत्या अजातशत्रु ने की। उसके बाद के चार उत्तराधिकारियों को भी पितृहंता कहा गया है। पितृहंता मतलब पिता की हत्या करने वाला। हरयांका वंश (HARYANKA DYNASTY) का अंत लोगों ने किया। उसके राजा को कुर्सी से उतार दिया औऱ उसके सिपाही शिशुनाग को गद्दी सौंप दी। यह हिंसा का दूसरा स्वरूप है। जनता भी राजा तय करती थी। शिशुनाग वंश का अंत हिंसा से होता है और उसकी जगह नंद वंश आता है। जो ख़ुद को संपूर्ण क्षत्रियों का संहारक घोषित करता है। मौर्य वंश भी पारंपरिक और कुलीन क्षत्रियों या सत्ताधारी वर्ग को पलटते हुए अपनी राज्य और सैन्य सत्ता का विस्तार करता है। उपिंदर सिंह इन सब किस्सों को हिंसा के संदर्भ में देखती है। समझना चाहती है कि इन सबके बीच हिंसा और अहिंसा को लेकर किस तरह का नज़रिया समाज से लेकर राजसत्ता तक उभर रहा है।
उनका कहना है कि छठी और पांचवी ईसा पूर्व की सदी से हिंसा और अहिंसा को लेकर होने वाली बहसें मुखर होने लगती हैं। इसी कालखंड में प्राचीन भारत के विचारों का इतिहास सबसे अधिक उर्वर था। धर्म का मतलब भी समय के साथ बदलता है। पहले धर्म कर्मकांडीय क्षेत्र तक सीमित था फिर इसे राजनीतिक तौर पर देखा जाने लगा और उसके बाद नैतिक तौर पर। इस दौर में सत्ता और ज्ञान को लेकर ख़ूब बहस होती है। इतनी कि उसकी निशानी या फिर वो बहसें आज तक चली आ रही हैं। यहीं से भारतीय संस्कृति में त्याग को लेकर काफी ज़ोरदार बहस होने लगती है। त्या के मतलब में शामिल था सत्ता और अर्थ के मोह को छोड़ देना। अंहिसा को लेकर भी बहस होती है। इतिहासकार उपिंदर सिंह खोज रही हैं कि हम कहां से हिंसा के महिमामंडन की आलोचना के सूत्र खोज सकते हैं और कहां से देख सकते हैं कि हिंसा से विरक्ति हो रही है और अहिंसा का आदर्श स्थापित हो रहा है।
इसके तीन जवाब है। वैदिक मत के भीतर भी अहिंसावादी का पता चलता है। ग़ैर वैदिक संत परंपरा में, जिसे जैन और बौद्ध परंपरा कहा जाता है, अंहिसावादी मतवालंबी मिलते हैं। एक तीसरी धारा है जो ब्राह्मणवादी, बौद्ध और जैन परंपरा के समानांतर विकसित होती है। मैं अभी इस किताब को पढ़ रहा हूं। यह किताब प्राचीन भारत के प्रति हमारी समझ को समृद्ध करती है। समृद्ध करने का मतलब यह नहीं कि एक पक्ष की जीत और एक पक्ष की हार का एलान करती है। बल्कि बताती है कि जीवन को इस तरह देखा ही नहीं जा सकता है। जीवन को ही नहीं, अपने इतिहास को भी नहीं। जो ऐसा नहीं करते हैं वही अतीत पर अपनी नासमझी थोप देते हैं और भारत की आत्मा को बेचन कर देते हैं।
समाज के भीतर हिंसा की परंपरा को समझना चाहिए तभी हम आज के संदर्भ में सत्ता के हिंसक चरित्र को समझ सकते हैं। हमारे समाज में जातीय हिंसा का अमानवीय चक्र आज भी जारी है। सत्ता के हिंसक किस्सों को हम भोग रहे हैं मगर बोलते समय अपनी राजनीतिक निष्ठा का ज़्यादा ख़्याल रखते हैं। जी एन साईबाबा को नक्सल समर्थक होने के आरोप में जेल में बंद किया गया है। उन्होंने अपनी पत्नी को पत्र लिखा है कि उनके साथ ऐसा बर्ताव हो रहा है जैसे कोई जानवर अपने अंतिम दिनों में तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जीएन साईंबाबा 90 फीसदी विकलांग हैं। आप दिव्यांग कह लीजिए तो इस ईश्वर के वरदान के साथ ये बर्ताव हो रहा है कि सर्दी से कांप रहा है मगर कंबल नहीं दिया जा रहा है। एक पक्ष यह है। दूसरा पक्ष यह होगा कि आप कहेंगे कि नक्सलवादियों ने जवानों को मारा जिनका कोई कसूर नहीं था। एक तीसरा पक्ष यह है कि आदिवासियों के साथ राज्य सत्ता ने हिंसा की, उन्हें बेदखल कर उनकी ज़मीन और संपत्ति बड़े औद्योगिक घरानों को सौंप दी। हिंसा का यह चक्र तीनों दृष्टि से क्रूर है। एक चौथा पक्ष है, यही सत्ता पक्ष जवान से लेकर नागरिक जिसे जब चाहे उठाकर जेलों में बंद कर सकता है और आपको वर्षों कोर्ट के चक्कर लगवा सकता है। 
हम सब हिंसा के शिकार हैं। हम हर तरह की हिंसा के प्रति सहनशील हो चुके हैं। बुद्धिहीन हो चुके हैं। हम सब हिंसक हैं और हिंसा के चक्र में ही जीने के लिए अभिशप्त हैं। इसलिए अंहिसा का गुणगान करने से पहले उस हिंसा का चेहरा देख लीजिए जो हम सबका है। हिंसा को सहना भी हिंसा है। हिंसा को होते हुए देखना भी हिंसा है। हिंसा करने वाले राज्य का अहिंसा का ढोंग करना भी हिंसा है। आप यह किताब अपनी दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए पढ़ सकते हैं। हमने जो उदाहरण दिए हैं वो पूरे नहीं हैं। करीब 600 पन्नों की किताब के बारे में राय उसे पढ़ने के बाद ही बनाइये न कि मेरी समीक्षा के बाद। आलस्य भी हिंसा है दोस्त।

Friday 27 October 2017

प्रधानमंत्री जी गुजरात के वे 50 लाख घर कहां हैं?

2012 में जब गुजरात में चुनाव करीब आ रहे थे तब गुजरात में घर को लेकर काफी चर्चा हो रही थी। कांग्रेस ने गुजरात की महिलाओं के लिए घर नू घर कार्यक्रम चलाया था कि सरकार में आए तो 15 लाख प्लाट देंगे और 15 लाख मकान। कांग्रेस पार्टी के दफ्तरों के बाहर भीड़ लग गई थी और फार्म भरा जाने लगा था। इस संबंध में आपको गूगल करने पर अर्जुन मोदवादिया का बयान मिलेगा।
2012 के अगस्त महीने में मिंट अख़बार के मौलिक पाठक ने इस पर रिपोर्ट करते हुए लिखा था कि दो दिन के भीतर कांग्रेस की इस योजना के तहत 30 लाख फार्म भर दिए गए थे। मौलिक पाठक ने लिखा कि गुजरात हाउसिंग बोर्ड ने पिछले दस साल में एक भी स्कीम लांच नहीं की है। उससे पहले कोई 1 लाख 70,000 घर बनाए हैं। कांग्रेस की इस योजना के दबाव में आकर गुजरात हाउसिंग बोर्ड ने 6,300 नए घरों की स्कीम लांच कर दी। तब इसके जवाब में गुजरात हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन ने कहा था कि पहले मांग नहीं थी। अब मांग हो रही है तो यह योजना आई है। दस साल तक गुजरात में किसी को घर की ज़रूरत ही नहीं पड़ी!
मिंट की रिपोर्ट में दिया गया है कि 2001 से लेकर 2012 तक इंदिरा आवास योजना के तहत 9,14,000 घर बने थे। सरदार आवास योजना के तहत 3 लाख 52,000 घर बने। इसी रिपोर्ट में बीजेपी के प्रवक्ता आई के जडेजा ने कहा था कि मोदी जी ने 11 साल में साढ़े बारह लाख घर बनाए हैं। कांग्रेस ने 40 साल में 10 लाख ही घर बनाए थे।
3 दिसंबर 2012 के किसी भी प्रमुख अख़बार में यह ख़बर मिल जाएगी। बीजेपी का संकल्प पत्र पेश करते हुए मुख्यमंत्री के तौर पर संकल्प पत्र पेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि 5 साल में 30 लाख नौजवानों को नौकरी देंगे। गांव और शहरों के ग़रीबों के लिए 50 लाख घर बना कर देंगे। गुजरात में क्या वे 30 लाख नौजवान सामने आ सकते हैं जिन्हें नौकरी मिली है या घर मिले हैं? क्या इस चुनाव में वे इसकी बात करेंगे?
तब मोदी ने कहा था कि कांग्रेस ने 40 साल में घटिया क्वालिटी के 10 लाख घर ही बनाए। बीजेपी ने दस साल में 22 लाख घर बनाए। अभी ठीक एक पैराग्राफ पहले आप बीजेपी प्रवक्ता का बयान देखिये। दस साल में साढ़े बारह लाख घर बने हैं। मुख्यमंत्री मोदी कह रहे हैं कि 22 लाख घर बने हैं। दस लाख की वृद्धि हो जाती है।
8 दिसंबर 2012 के इंडियन एक्सप्रेस में अजय माकन का बयान छपा है। वे तब केंद्र में शहरी विकास मंत्री थे। माकन कह रहे हैं कि 5 साल में 50 लाख घर बनाने की योजना असंभव है। यही बात केशुभाई पटेल ने भी कही थी। माकन ने तब कहा था कि बीजेपी सरकार ने 7 साल में मात्र 53, 399 घर ही अलाट किए हैं। अगर आप ज़मीन की कीमत निकाल भी दें, तो भी 50 लाख घर बनाने में 2 लाख करोड़ की लागत आएगी। इतना पैसा कहां से आएगा?
5 साल बीत रहे हैं। नरेंद्र मोदी इस बीच मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री हो चुकी हैं। 2012 के जनादेश के एक हिस्से में यानी 2012-14 के बीच मुख्यमंत्री और 2014 से 2017 के बीच प्रधानमंत्री। यानी वे यह भी नहीं कह सकते कि दिल्ली की सल्तनत ने ग़रीबों के आवास के लिए पैसे नहीं दिए। वे चाहें तो दो मिनट में बता सकते हैं कि किन किन लोगों को 50 लाख घर मिले हैं और वे घर कहां हैं।
30 मार्च 2017 के इकोनोमिक टाइम्स में कोलकाता से एक ख़बर छपी है। तब शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू थे। इस खबर के अनुसार 2015 में लांच हुई प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गुजरात में सबसे अधिक 25, 873 घर बनाए हैं। यह देश में सबसे अधिक है। आप सोचिए, 2015 से 2017 के बीच 25, 873 घर बनते हैं तो इस दर से क्या 2012 से 2017 के बीच 50 लाख घर बने होंगे? 50 लाख छोड़िए, पांच लाख भी घर बने हैं?
28 अगस्त 2017 के इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर है। मोदी सरकार ने शहरी ग़रीबों के लिए 2 लाख 17 हज़ार घर बनाने की योजना को मंज़ूरी दी है। इसके तहत गुजरात में 15, 222 घर बनने हैं। मोदी सरकार ने अभी तक देश भर में 26 लाख 13 हज़ार घर बनाने की मंज़ूरी दी है जिस पर 1 लाख 39 हज़ार करोड़ ख़र्च आने हैं।
अब आप ऊपर दिए गए अजय माकन के बयान को फिर से पढ़िए। माकन कह रहे हैं कि ज़मीन का दाम भी हटा दें तो भी 50 लाख घर बनाने में 2 लाख करोड़ चाहिए। यहां मोदी पूरे देश के लिए 50 लाख नहीं बल्कि उसका आधा यानी 26 लाख घर बनाने के लिए 1 लाख 39 हज़ार करोड़ की बात कर रह हैं। तो पचास लाख घर का हिसाब दो लाख से भी ज़्यादा बैठता है। वो भी एक राज्य के लिए, यहां मोदी 2022 तक इस योजना के तहत सबको घर देना चाहते हैं, यह योजना पूरे देश के लिए है।
18 जून 2015 की हिन्दू की ख़बर पढ़िए। 2022 के लिए यानी 2015 से 2022 तक के लिए दो करोड़ घर बनाने के लक्ष्य का एलान हुआ है। हर परिवार को पक्का घर मिलेगा। दो साल बाद मोदी कैबिनेट 26 लाख घर बनाने की मंज़ूरी देती है। आप राजनीति समझ रहे हैं या हिसाब समझ रहे हैं या लाफ्टर चैलेंज का कोई लतीफा सुन रहे हैं?
क्या गुजरात में बीजेपी ने 2012-12017 के बीच 50 लाख घर बना कर दिए? हमारे पास इसका कोई न तो जवाब है न ही प्रमाण। गूगल में बहुत ढूंढा। 28 अगस्त 2016 को कांग्रेस नेता हिमांशु पटेल का बयान है। हिमांशु आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी ने 20 प्रतिशत भी घर बनाकर नहीं दिए हैं।
आप कहेंगे कि बीजेपी ही चुनाव जीतेगी। बिल्कुल जीतेगी। मगर क्या वो जीत और भी शानदार नहीं होती अगर पार्टी या प्रधानमंत्री मोदी अपने वादे का हिसाब दे देते? बता देते कि 50 लाख घर कहां हैं? 30 लाख रोज़गार कहां हैं?
नोट: गूगल सर्च करके यह सब लिखा है। आप भी गूगल कीजिए। अगर कोई औपचारिक बयान मिले तो कमेंट में लिखिएगा हम यहां जोड़ देंगे।

Monday 23 October 2017

क्या बीजेपी के लिए गाय सिर्फ सियासी धंधा है?

छत्तीसगढ़ में 200 से अधिक गायों की भूख और कुपोषण से मौत पर कोई ललकार ही नहीं रहा है कि मैं क्यों चुप हूं। लाखों गायें रोज़ सड़कों पर प्लास्टिक खाकर मर रही हैं। कैंसर से भी पीड़ित हैं। उनके बारे में भी कुछ नहीं हो रहा है। जबकि गायों के लिए वाकई कुछ अच्छा किया जाना चाहिए। सारी ऊर्जा गाय के नाम पर बेवकूफ बनाने और नफ़रत की राजनीति फैलाने के लिए ख़र्च हो रही है। गाय के नाम पर आयोग बन गए, मंत्रालय बन गए मगर गाय का भला नहीं हो रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस में एक तस्वीर छपी है। गेट पर बड़ा सा कमल निशान बना है। जिसके अंदर अलग अलग ख़बरों के अनुसार 200 से 500 गायों के मरने का दावा किया जा रहा है। गौशाला चलाने वाला हरीश वर्मा भाजपा के जमुल नगर पंचायत का उपाध्यक्ष है। इसके ख़िलाफ़ एफ आई आर दर्ज हुई है और गिरफ्तार हुआ है।
क्योंकि इसकी गौशाला में बड़ी संख्या में गायें भूख और प्यास से मर गईं हैं। गौशालाओं में वैसे ही अशक्त हो चुकी गायें लाई जाती हैं उन्हें चारा न मिले तो कैसे तड़प कर मर जाती होंगी, सोच कर ही आंसू निकल जाते हैं। और ये बात मैं नाटकीयता पैदा करने के लिए नहीं कह रहा। गाय दूहने से लेकर जीभ का दाना छुड़ाने के लिए दवा भी रगड़ सकता हूं। मैं इस बात से हिल गया हूं कि गाय भूख और प्यास से मर सकती है और उसके यहां मर सकती है जिनका हर बड़ा नेता चुनाव आते ही गाय गाय करने लगता है।
एक्सप्रेस ने लिखा है कि गौशाला के भीतर मरी हुई गायें बिखरी पड़ी हैं। उनके कंकाल निकलने लगे हैं और सडांध फैल रही है। गायों के मांस अवारा कुत्ते खा रहे हैं। पिछले साल भी हरीश वर्मा की गौशाला का मामला स्थानीय मीडिया में ख़ूब उछला था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ‘सरपंच पति’ शिवराम साहू ने बयान दिया है कि जब वे भीतर गए तो देखा कि गायों के लिए न तो चारा था, न पानी। वर्मा ने सरकार की एजेंसी पर ही आरोप मढ़ा है कि सतर्क किया था कि गौशाला के पास कैश नहीं है। जैसे गोरखपुर में आक्सीजन के लिए कैश नहीं था।
छत्तीसगढ़ से सोमेश पटेल का व्हाट्स अप मेसेज आया है। बेमेतरा ज़िला के परपोड़ी थाना के गोटमर्रा में फूलचंद गौशाला है। यहां 100 से अधिक गायों की मौत हुई है। गौशाला संचालक ने ईंट भट्टे में छुपाने का प्रयास किया है। गौसेवक आयोक के अध्यक्ष गीतेश्वर पटेल ने किया निरीक्षण। 13 गायों की मौत का लोकर परपोड़ी थाने में मामला दर्ज। ज़िला प्रशासन मामले से बेख़बर। ये अलग घटना है। इसका संबंध हरीश वर्मा की गौशाला से नहीं है।
विश्व हिन्दू परिषद के सह प्रान्त संयोजक ओमेश बिशन से फोन पर बात हुई, उनकी बातचीत को लिखने के लिए अनुमति ले चुका हूं। ओमेश बिशन जी ने बताया कि हरीश वर्मा का पास तालाब है जिसमें मांगुर मछली पलती है। यह मछली मांस खाती है इसलिए मरी हुई गायों को तालाब में डाल देता था और लोगों को पता नहीं चलता था। हम लोगों ने उस तालाब को बंद करवाया इसलिए भी लोगों को मरी हुई गायें बाहर दिख रही हैं।
ओमेश जी कहते हैं कि हरीश की गौशाला को 93 लाख का पेमेंट भी हुआ है मगर हरीश का कहना है कि दो साल से पेमेंट नहीं हुआ। सरकार ने एक साल का दस लाख नहीं दिया। वेटनरी डाक्टर कह रहे हैं कि दो दिन में 27 गायों का पोस्टमार्टम किया है। एक्सप्रेस कह रहा है कि 30 कंकाल तो खुद ही उसके संवाददाता ने गिने हैं। हरीश का कहना है कि 16 गायें मरी हैं और दीवार गिरने से। पुलिस कह रही है कि 250 गायें मरी हैं। क्या 27 गायों का भूख से मरना शर्मनाक घटना नहीं है। जब एक गाय के नाम पर आदमी मार दिया जा रहा है तो 27 गायों की संख्या कैसे 200 या 500 के आगे छोटी हो जाती है।
हमने ओमेश जी से कई सवाल पूछे। मैं हैरान था कि एक साल में दो लाख गायों के मरने का आंकड़ा उनके पास कहां से आया है। वे कहने लगे कि अकेले रायपुर में हर दिन सड़क दुर्घटना और पोलिथिन खाकर साठ से अस्सी गायें मरती हैं। सरकार में बैठे लोग मौज कर रहे हैं। कोई कुछ नहीं करता है। मैंने कहा भी ओमेश जी, लिख दूं तो कहा कि बिल्कुल लिखिये। मुझे भी ध्यान नहीं था कि सड़क दुर्घटना से मरने वाली गायों की संख्या को लेकर तो कोई हिसाब ही नहीं होता है। ओमेश जी से जब मैंने पूछा कि गायों को लेकर क्या हो रहा है तब, इतनी राजनीति होती है, मारपीट होती है, तो फिर लाभ क्या हुआ। उनका जवाब था, गायों के लिए कुछ नहीं हुआ।
गौ रक्षा के तमाम पहलू हैं। ओमेश जी अपनी समझ के अनुसार गाय के प्रति समर्पित लगे। कोई उनसे असहमत भी हो सकता है, यह सवाल बनता भी है कि बीफ पर बैन से कमज़ोर गायों की संख्या बढ़ेगी, उनका लालन पालन नहीं होगा और किसान अपनी गायों को भूखा मारने के लिए छोड़ देता है क्योंकि उसकी आर्थिक शक्ति नहीं होती है। यह सब सवाल हैं मगर ओमेश का कहना है कि समाज का बड़ा तबका गायों की रक्षा के लिए लगा हुआ है मगर सरकार ही कुछ नहीं करती है।
ओमेश जी ने कहा कि सड़क दुर्घटना और पोलिथिन खाकर मरने वाली गायों का मेरे पास रिकार्ड है। मैंने पचास हज़ार ऐसी गायों की तस्वीर और वीडियो बनाई है। हो सकता है कि उनकी बातों में अतिरेक हो मगर बंदे ने कह दिया कि रायपुर का वो मैदान भी दिखा सकता हूं जहां इन गायों को दफनाया है। फिर बात चारागाह की ज़मीन को लेकर होने लगी तो उन्होंने ही कहा कि कुछ नहीं हुआ है इस मामले में भी। खुद सरकार चारागाह की ज़मीन पर कब्ज़ा करती है वहां कालोनी बनाती है, सरकारी इमारत बनाती है। नया रायपुर बना है, उसके लिए बड़ी मात्रा में चारागाह की ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया है। ओमेश ने कहा कि आप बेशक ये बात लिख सकते हैं, हम लोगों ने ख़ूब पत्र लिखे हैं। मैं उनसे सबूत के तौर पर मीडिया में छपी ख़बरों की क्लिपिंग मांगने लगा तो उनका जवाब था कि वे रायपुर से सौ किमी दूर हैं, वरना दे देते। जांच में लीपापोती होती रहेगी मगर गौशालाओं की हालत ख़राब है इससे कौन इंकार कर सकता है।
राजस्थान के जालौर ज़िले से इसी 27 जुलाई को हिन्दुस्तान टाइम्स ने ख़बर छापी। भारी वर्षा के कारण 700 गायें मर गईं। गायें इतनी अशक्त हो गईं कि उठ ही नहीं सकी। जहां बैठी थीं वहीं पानी किचड़ में सन गईं और मर गईं। बारिश के कारण चारा नष्ट हो गया। 3300 गायें घायल हो गईं जिनका इलाज चल रहा है। पिछले साल जुलाई में जयपुर के हिंगोनिया गौशाला में 500 गायों की मौत हो गई थी।
इसका मतलब है कि गायों को रखने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं खड़ा किया गया या पहले के ढांचे को बेहतर ही नहीं किया गया। चारागाह की ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया है। इस पर किसी का ध्यान नहीं है। क्योंकि इससे गांव गांव शहर शहर में बवाल हो जाएगा। हिन्दुओं की आस्था के नाम पर दुकान चलाने वालों का खोंमचा उजड़ जाएगा। इसलिए गाय को लेकर भावनाओं को भड़काओं और भावनाओं को मुसलमानों की तरफ ठेल दो। नफ़रत फैल कर वोट बनेगा वो तो बोनस होगा ही।
हरियाणा में गोपाल दास दो महीने से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। अनशन भी करते हैं। गिरफ्तार भी होते रहते हैं। इनके लोग व्हाट्स अप सूचना भेजते रहते हैं। एक अख़बार की क्लिपिंग भेजी है। छपी हुई ख़बर में गोपालदास ने दावा किया है कि सत्तर हज़ार एकड़ गोचरण की ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया है। सरकार हटाने का कोई प्रयास नहीं कर रही है। इसी रिपोर्ट में सांसद के सचिव का बयान छपा है कि हमारे पैसा ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है। ऐसा हो है सकता है क्या? अनुराग अग्रवाल नाम के रिपोर्टर ने लिखा है कि हरियाणा में 368 होशालएं हैं। 212 लाख गायें हैं। 1950-52 में चकबंदी के दौरान पंचायती ज़मीन में गोचरान के लिए ज़मीन छोड़ी गई जिस पर कब्जा हो गया। पंचायत और विकास विभाग के पास कब्ज़े की रिपोर्ट भी है लेकिन कोई इस पर कार्रवाई नहीं करना चाहता।
ये तीनों भाजपा शासित राज्य हैं। जब यहां गायों की हालत इतनी बुरी है, तो बाकी राज्यों में क्या हालत होगी? गौ रक्षा के नाम पर आम लोगों को वहशी भीड़ में बदला जा रहा है। जबकि गाय भूख और प्यास से मर रही है। उसकी हालत में कुछ सुधार नहीं हुआ। गाय के लिए वाकई कुछ करने की ज़रूरत है। हमारी आंखों के सामने रोज़ गायें मर रही हैं। हम हैं कि हिन्दु मुसलमान कर रहे हैं। गाय से इतना बड़ा राजनीतिक धोखा कैसे हो सकता है? हरीश वर्मा तो गिरफ्तार हुआ है मगर गाय के चरने की ज़मीन कब कब्ज़े से मुक्त होगी, उसके जीने के लिए कब व्यवस्था होगा। गौरक्षा के नाम पर चीखने वाले ही उसकी हत्या में शामिल हैं। मेरे जैसे लाखों लोग गौरक्षा के लिए दुकान दुकान दान देते हैं,उनके साथ भी धोखा है। पता नहीं उन पैसों का क्या होता होगा। कुछ गौशालाएं अच्छी भी हैं मगर वो राजनीति से दूर चुपचाप अच्छा काम रही हैं। बेरोज़गारी और बुनियादी समस्याओं से भटकाने के लिए गाय का राजनीतिक इस्तमाल हो रहा है। गाय वोट देती है। वोट का फर्ज़ अदा कर रहे हैं, दूध का कर्ज़ नहीं। बीजेपी से सवाल करने का वक्त है क्या उसके लिए गाय सिर्फ एक सियासी धंधा है?

तेहन बेरोजगारी दुनियां में, पांच रुपैये कीलो पीजी

फोन उठाने की आदत से कई बार ख़बरों और जानकरियों के भंडार तक पहुंच जाता हूं। बुधवार को दरभंगा से प्रो झा का फोन आया। पहली बार ही बातचीत हो रही थी, बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर होने लगी। उन्होंने बताया कि प्रोफेसर और लेक्चरर के 70 फीसदी पोस्ट खाली हैं। बी टेक का बच्चा इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ा रहा है। कोई एम टेक करता ही नहीं है। इस पीढ़ी को शिक्षा से मतलब क्यों नहीं हैं। वो तो पीढ़ी जाने कि उसे नौकरी चाहिए या भाषण। वो एक लाख करोड़ के बुलेट ट्रेन पर फिदा है, मगर नहीं पूछती कि शिक्षा स्वास्थ्य का बजट कहां गया तो मैं क्या करूं। 70 फीसदी पोस्ट ख़ाली हैं तो बिहार के बेरोज़गार युवा ज़रूर फार्वर्ड बैकवर्ड या नहीं तो हिन्दू-मुस्लिम में मस्त होंगे। जगह-जगह किसान, आशा वर्कर का प्रदर्शन चल रहा है। आज का युवा राजनीतिक दल के थर्ड क्लास नेताओं के लिए व्हाट्स अप मेसेज फार्वर्ड कर रहा है तो हम क्या करें। आम तौर पर युवाओं के बारे में ऐसे ही सोचने लगा हूं। प्रो झा दिलचस्प इंसान मालूम हो रहे थे। इतनी आसानी से छोड़ा नहीं। उन्होंने प्राइवेट एजुकेशन पर एक कविता सुनाई। उनके अनुसार जनक जी मैथिली के बड़े कवि हैं। मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। मैं भोजपुरी के बाद मैथिली सीखना चाहता था। कोशिश की मगर अब वो भी बीस साल पुरानी बात हो गई। प्रो झा ने जनक जी की कविता का स्क्रीन शॉट भेजा है. बहुत मुश्किल नहीं है आप ध्यान से पढ़ेंगे तो समझ आ जाएगी। व्यंग्य है। मुझे तो बहुत हंसी आई।
तेहन बेरोजगारी दुनियां में, पांच रुपैये कीलो पीजी
तैं न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय नीजी
की करता बैसल बौआ सब, चालू कर पब्लिक पठशाला
पम्पलेट,पोस्टर, स्पीकर, येह तीन टा गरम मसाला
ड्रेस,मेकप आकर्षक चाही, एहन जीविका सब सं ईजी
तें न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय निजी
सस्त किबात किनए ननै बच्चा, महग किनबियौ तखने चलती
निनानबे सं कम नंबर ने,कतवो रहौ लाखटा गलती
स्वर-व्यंजन बूझै ने बूझै, कैट-रेटा टा हरमद गीजी
तें न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय निजी
किसिम किसिम फूलक फूलवाड़ी, छछलौआ सीढ़ी आ झुल्ला
लीखो-फेको पुरस्कार दी, लखन गारजन फंसते मुल्ला
भोरे कोचिंग, दिनका टीचिंग, दुन्ना इनकम शुनान पूजी
तें न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय निजी
की कारण सब नीक-नीक इशकूल शुन्न लागए सरकारी
मेधा प्रतिभा रहितो सबठां अपमानित हो छात्र बिहारी
सबहक आदर साउथ-वेस्ट में, हम्मर बच्चा शुद्ध रिफ्यूजी
तें न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय निजी
आइ नियोजित टीचर डगमग, दैन्य दशा डगरा केर भट्टा
काल्हि छला ओ खूब मीठ आ आई भेला आमिल सन खट्टा
कुप्प अन्हार टीचरक फ्यूचर, सगरे गाम गुरुकैं भूजी
तें न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय निजी
अध्यापन टेकनिक केर ज्ञाता, अनुभव, अवलोकन में पक्का
शान्त चित्त सं पढ़ा देता तं, फरजी-सरजी, हक्का-बक्का
गीत कवित्त सभे बिसरी जं, अधपेटू हो रोटी रोजी
तें न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय निजी
हे गुरुवर वशिष्ठ, सन्दीपन, पढ़ा दियौ ओ पुरना लेशन
दिशा हीन आरत भारत में, सुधरि जैत नवका जनरेशन
कखन पढ़ोत्ता थाकल टीचर, सरकारी लेटर में ब्यूजी
तें न कुकुरमुत्ता सन फड़लै, डेग-डेग विद्यालय निजी

Thursday 19 October 2017

दीपिका पादुकोण ने क्यों दिखाया गुस्सा? केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से कहीं एक्शन लेने की बात

दीपिका पादुकोण ने पद्मावती की रंगोली बर्बाद करने को लेकर बेहद नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी स्मृति ईरानी से खास अपील की है। दीपिका पादुकोण ने स्मृति ईरानी से अपील करते हुए कहा कि पद्मावती के नाम पर ये तांडव फौरन बंद होना चाहिए।
स्मृति ईरानी
दीपिका पादुकोण ने सरकार से गुहार लगाई है कि वो आए दिन पद्मावती पर हो रहे विरोध को रोकने के लिए कदम उठाए। केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी को ट्वीट करते हुए दीपिका ने लिखा है कि ये सब अब रुकना चाहिए और सरकार को इसके खिलाफ कड़ा एक्शन लेना चाहिए।
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान करणी सेना ने विरोध किया था और अब एक बार फिर इसका विरोध हुआ है। फिल्म के लिए एक आर्टिस्ट ने 48 घंटे की मेहनत के बाद रंगोली तैयार की थी, जिसे कि कुछ अज्ञात लोगों ने नष्ट कर दिया। इस रंगोली को बनाने वाले सूरत के आर्टिस्ट करण के. का दावा है कि इसे ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए तकरीबन 100 लोगों ने नष्ट किया है।
दीपिका ने एक अन्य ट्वीट में सवालिया लहजे में पूछा कि,’ये कौन लोग हैं? रंगोली नष्ट करने के लिए कौन जिम्मेदार है? यह सब और कब तक चलेगा?’
बता दें कि इस फिल्‍म के राजस्‍थान में लगे सेट पर राजपूत करणी सेना ने हमला कर दिया था, जिसमें संजय लीला भंसाली को भी चोट आई थी। इस हमले की बॉलीवुड ने जमकर आलोचना की थी और उसके बाद इस फिल्‍म की शूटिंग राजस्‍थान की बजाए सेट लगा कर महाराष्‍ट्र में ही की गई।

Wednesday 18 October 2017

महिलाओं पर ‘यौन अपराधों’ को लेकर ‘दिल्ली’ पूरी दुनिया में पहले स्थान पर

देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार ने कई नियम व कानून बनाए। लेकिन कहीं ना कहीं उन नियम कानून पर सवाल उठ ही जाता है। आए दिन किसी ना किसी के घर में महिलाओं को मारा पीटा जाता है। जिसके खिलाफ ना जाने कितनी महिलाएं शिकायत ही नहीं करती है। उनका कहना होता है कि वह उनके घर का मामला है। वहीं कई महिलाएं ऐसी होती है जो घर व बाहर सेक्सुअल असॉसल्ट की शिकार होती हैं। लेकिन वह इस मुद्दे पर आवाज नहीं उठाती हैं।
हाल ही में एक सर्वे हुआ जिसमें भारत की राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा सेक्सुअल असॉल्ट के मामले सामने आएं हैं। वहीं दिल्ली के बाद ब्राजील के शहर साओ पाउलो में इस तरह के मामले देखने को मिले। इनता ही नहीं इस सर्वे में ये भी बताया गया कि मिस्र की राजधानी कायरो महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक शहर है। वहीं जापान का टोक्यो महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित।
बता दें कि यह सर्वे थॉम्सन रॉयर्टस फाउंडेशन के जरिए करवाया गया है। इस सर्वे में महिलाओं और उनसे जुड़े हुए मामलों पर 19 अलग-अलग देशों की स्थिति को समझा। जिसमें उन 19 देशों की महिलाओं की स्थिति के जो आकड़े सामने आए वो ज्यादा चौकाने वाले नहीं थे। वहीं भारत में संयुक्त राष्ट्र महिला की मुखिया रेबेका रीचमैन टैवर्स ने इस सर्वे पर कहा कि, भारत के लिए यह नतीजे ज्यादा चौकाने वाले नहीं है।
आपको बता दें कि इस सर्वे में 380 विशेषज्ञों से बात की गई थी। जिसमें सेक्सुअल हिंसा, महिलाओं के शोषण, स्वास्थ्य सेवाओं और उनके लिए आर्थिक विकल्प को लेकर सवाल पूछे गए थे। इन सब पर बात करने के बाद ही देशों में महिलाओं कि स्थिति पर सर्वे किया गया।
वहीं मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मिस्र की राजधानी कायरो को तीसरे नंबर पर रखा गया है क्योंकि सर्वे में इस देश को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश बताया गया है। वहीं दूसरे नंबर पर स्पेन के मेक्सिको और बांग्लादेश के ढाका को रखा गया है। दिल्ली और साओ पाउलो को पहले नंबर पर रखा गया है। क्योंकि यहां पर सेक्सुअल असॉल्ट के मामले ज्यादा देखे गए हैं।
महिलाओं पर बढ़ रहे यौन अपराधों को लेकर पुलिस के आकडें भी ज्यादा चौकाने वाले नहीं है। आकड़ों की माने तो दिल्ली में 2016 में 2155 रेप हुए, जो साल 2012 के मुकाबले 67 प्रतिशत बढ़े हैं। वहीं सरकारी आकड़ें देखे जाएं तो साओ पाउलो में इस साल जुलाई में 2,287 रेप के मामले दर्ज हुए जो पिछले साल के मुताबिक 2,868 थे। रेप के मामलों को लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च का कहना है कि रेप से जुड़े 10 प्रतिशत मालमे ही सामने आते हैं।

Monday 9 October 2017

shatri

क्या पता कब मौत का पेगाम आजाए. . .
. . . . . . . . . . कब मेरे ज़िन्दगी का आखरी साम आजाए. . .
. . . . . मैं उस पल का इंतेजार करता हूँ . .
. . . . . . . . . . . . . . . . ऐ मेरे दोस्त मेरे ज़िन्दगी भी. . .
. . . . . . . . . मेरे दोस्तों के काम आजाए. . .
. . . . . . . . . . . . . . लव यू फ्रेंड. . . . . . . . . . . .

ऑस्ट्रेलिया और अडानी*

ऑस्ट्रेलिया और अडानी*
👁👃👁
*ऑस्ट्रेलिया के लोगो ने अडानी के खिलाफ विद्रोह कर दिया है। देश के संसाधनों पर किसी एकाध व्यक्ति का अधिकार कैसे सहा जाए? नरेंद्र मोदी ने अपने साथ जहाज में बैठाकर अडानी को ऑस्ट्रेलिया ले गए। गलत तरीके से कोयला का व्यापार इधर उधर करने का प्रयास किये। 11700 करोड़ का ऋण अडानी को अकेले मुहैया करवाया। जवाहर लाल नेहरू जैसी टॉप यूनिवर्सिटी का बजट 170 करोड़ है। इस हिसाब से 100 ऐसे संस्थान इतने पैसे में बन सकता है।*
*विचारणीय होगा की ऑस्ट्रेलिया जैसा सशक्त देश जिस अडानी को देश मे घुसने का विद्रोह कर दिया, वही आदमी अपने देश के पीएम को जेब मे लेकर घूमता है।*

*प्रेषक-नरेन्द्र मोहन*

ज़िप में YKK क्यों लिखा होता है

99% लोग नहीं जानते है कि जीन्स के ज़िप में YKK क्यों लिखा होता है
दुनिया में आज बहुत से लोग है जो हर दिन जीन्स का इस्तेमाल करते है जीन्स पहनना लगभग सभी को पसंद है चाहे वो लड़का हो या लड़की लेकिन क्या आप जानते है कि जीन्स की ज़िप में YKK क्यों लिखा होता है और इसका मतलब क्या होता है शायद बहुत से लोगों ने इसे देखा भी न हो अगर आपको नहीं पता है की ज़िप में YKK क्यों लिखा जाता है तो चलिए हम आपको बताते है।
ज़िप में लिखा YKK एक ज़िप बनाने वाली कंपनी है जिसका पूरा नाम Yoshida Kogyo Kabushikigaisha है इसे दुनिया की सबसे पहली ज़िप निर्माता कम्पनी होने का दर्जा प्राप्त है यह कंपनी बैग्स, जैकेट, जीन्स इत्यादि के लिए ज़िप तैयार करती है YKK कंपनी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा जिप्स की सप्लाई करती है।
इस कंपनी की शुरुआत एक जापानी व्यापारी Tadao Yoshida ने साल 1934 में जापान की राजधानी टोक्यो में की थी अब इस कंपनी का सबसे बड़ा प्लांट georgia, यूएसए में है जो हर दिन लगभग 70 लाख जिप्स का निर्माण करके लगभग 71 देशों में एक्सपोर्ट करती है आपको बता दें कि YKK की एक शाखा गुडगाँव, हरियाणा में भी उपस्थित है

Sunday 8 October 2017

क्या है जय शाह का केस?* पूरा पढ़े और शेयर करे

क्या है जय शाह का केस?*

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आज ही वायर में *रोहिनी सिंह* द्वारा लिखा गया लेख पढ़ा,

_यह वही रोहिनी सिंह हैं जिन्होंने दामाद जी(रॉबर्ड वाडरा)के रातों रातों दुगनी-चौगनी हुई सम्पत्ति के बारे में लिखा था, और 2014 के चुनावों में BJP ने इसे राष्ट्रिय मुद्दा बना कर चुनाव लड़ा था।_

आज खुद बीजेपी के राष्ट्रिय अध्यक्ष *अमित शाह* के पुत्र *जय शाह* पर उंगली उठी है,क्यों की उनकी सम्पत्ति भी _1 साल में 1-2 गुना नहीं बल्कि 16 हज़ार गुना हो गई है,_ जी हाँ मैंने ठीक लिखा है 16000 गुना,वो भी ऐसे समय में जब देश मंदी के दौर से गुजर रहा है,नोटबंधी और # GST लागु होने के बाद देश भर का व्यपार ठप पड़ा हो,लोग बेरोजगार हो रहे हो,किसान कर्ज में डूब कर आत्महत्याएं करने पर मजबूर रहे हों।

2004 में अमित शाह के बेटे जय शाह,उनके रिश्तेदार *जितेंदर शाह* ने मिलकर एक कंपनी
*"शाह टेम्पल एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड"* का गठन किया,जिसमे अमित शाह की पत्नी सोनल शाह की भी हिस्सेदारी है।

2004 से 2014 तक कंपनी के पास कोई सम्पत्ति नहीं थी।जय शाह की कंपनी "टेम्पल एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड" ने
2013:6230₹ का घाटा,
2014:1724₹ का घाटा
2015:18,728₹ का लाभ
2016:16000 गुणा कमाई के साथ कमाई 50 हजार ₹ से बड़ कर एक ही साल में 80करोड़ से ऊपर पहुँच गई।

2014 में इनकम टैक्स विभाग ने कंपनी को 5,796Rs रिफंड भी किये।

अब आप चोकियेगा और पूछियेगा मत की एक ही साल में यह कमाई 16000 गुना कैसे बड़ गई। जिसमें 51करोड़ की कमाई विदेश में व्यपार करने से हुई दिखाई गई है,जब की पिछले साल विदेश से आने वाली कमाई ज़ीरो दिखाई गई है।

अब आप सोच रहे होगें की यह कंपनी काम क्या करती है? "शाह टेम्पल इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड" खेती (Agriculture Products) के क्षेत्र में काम करती है।

अमित शाह की सम्पत्ति जब 400 गुणा दिखाई गई तब सफाई आई की यह सम्पत्ति उनकी माता जी पीछे छोड़ गई थी।

पर अमित शाह के पुत्र जय शाह के पास 16000 गुना कमाई कहाँ से आई? 

जवाब मिला की *राजेश खंडवाला* से 15.78करोड़ का ऋण लिया गया है,राजेश खंडवाला *परिमल नथवाणी* के संबंधी हैं, परिमल नथवाणी झारखण्ड से बीजेपी समर्थित राज्य सभा सांसद है और अम्बानी की रिलायंस कंपनी में टॉप एग्जीक्यूटिव भी हैं,

आप ने इन्हें देश के प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी के साथ हवाई जहाज में सफ़र करते हुए कई बार देख चुके होंगें।

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री *पियूष गोयल* ने भी केंद्र के अधीन एक PSU से 10.35 करोड़ ₹ जय शाह की कंपनी को दिलवाये।

_सबसे बड़ी बात 2016 अक्टूबर में जय शाह की कंपनी दुबारा घाटा दिखा कर बंद भी की जा चुकी है।_

उम्मीद करते हैं की श्री देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी *"ना खाऊँगा,ना खाने दूँगा"* के नारे के तहत "शाह टेम्पल एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड"की निष्पक्ष जाँच ही नहीं करवायेगें बल्कि जल्द जाँच करवा दोषी पाये जाने पर सज़ा भी दिलवायें।

दोषी ना पाये जाने की स्तिथि में देश को "जय शाह"के अच्छे दिन कैसे आये यह फार्मूला देश के गरीब-बेरोजगार युवाओं को जरूर बतायेगें। 
आपस में लगे रहो वहाँ दिन दूनी रात चौगनी तरक्की हो रही है
मेरा नम्बर कब आएगा

कांग्रेस का योगदान And भाजपा के कारनामें

कांग्रेस का योगदान :-
AIIMS , IIT , मनरेगा, Medical Collage , Docters , Education City ,पेय जल योजना , मैट्रो , Engineer , Scientist , मंगलयान ओर आधार कार्ड ,
भाजपा के कारनामें :-
सेक्स रैकेट , बाल तस्करी , नकली नोट , ISIS की जासूसी , गौरक्षक गुंडे , आॅक्सीजन की कमी , हत्या , बलात्कार , दंगा , बीफ , फिरोती , अपहरण , कुतिया , अभ्रद भाषा ओर तानाशाही

Friday 6 October 2017

बहुत ही अच्छा मैसेज है थोड़ा सा टाइम निकाल कर पढ़े :-
👉ताज महल = मुसलमानों ने बनाया;
लाल किला = मुसलमानों ने बनाये ;
कुतुबमीनार = मुसलमानों ने बनाई;
चार मीनार = मुसलमानों ने बनाई;
गोल गुम्बज = मुसलमानों ने बनाया;
लाल दरवाजे = मुसलमानों ने बनाये;U
मिसाइल= मुस्लिम ने बनाई (डा.कलाम);
इंडिया गेट = अंग्रेजो ने बनाया
गेटवे ऑफ इंडिया = अंग्रेजो ने बनाया
हावड़ा ब्रिज= अंग्रेजो ने बनाया;
पार्लियामेंट हाउस= अंग्रेजों ने बनाया ;
राष्ट्रपति भवन = अंग्रेजों ने बनाया;
नॉर्थ-साऊथ ब्लॉक= अंग्रेजों ने बनाया ;
कनॉट प्लेस = अंग्रेजों ने बनाया
.
संविधान= SC ने बनाया (डॉ. अम्बेडकर);
तो ये baaki..भारत में करते क्या रहे है ?
(a) देश को गुलाम बनाते रहे हैं !
(b) देश, धर्म, संस्कृति, सभ्यता और समाज को
कमजोर करते रहे हैं !
(c) देश में जाति-धर्म के नाम पर दंगा कराते रहे हैं !
(d) देश को तोड़ते रहे हैं !
(e) देश का धन और धार्मिक भय के नाम पर मंदिरों
में इकट्ठा करते रहे हैं !
काँग्रेस जब सत्ता मे थी तब बीजेपी विरोधी पक्ष
मे बैठी थी और सभी हो रहे भ्रष्टाचार देख रही थी।
मतलब यही होता हें बीजेपी और काँग्रेस मिलकर
भारत को लूट रही हैं !
1987 - बोफोर्स तोप घोटाला, 960 करोड़
1992 - शेयर घोटाला, 5,000 करोड़।।
1994 - चीनी घोटाला, 650 करोड़
1995 - प्रेफ्रेंशल अलॉटमेंट घोटाला, 5,000 करोड़
1995 - कस्टम टैक्स घोटाला, 43 करोड़
1995 - कॉबलर घोटाला, 1,000 करोड़
1995 - दीनार / हवाला घोटाला, 400 करोड़
1995 - मेघालय वन घोटाला, 300 करोड़
1996 - उर्वरक आयत घोटाला, 1,300 करोड़
1996 - चारा घोटाला, 950 करोड़
1996 - यूरिया घोटाला, 133 करोड
1997 - बिहार भूमि घोटाला, 400 करोड़
1997 - म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला, 1,200 करोड़
1997 - सुखराम टेलिकॉम घोटाला, 1,500 करोड़
1997 - SNC पॉवेर प्रोजेक्ट घोटाला, 374 करोड़
1998 - उदय गोयल कृषि उपज घोटाला, 210 करोड़
1998 - टीक पौध घोटाला, 8,000 करोड़
2001 - डालमिया शेयर घोटाला, 595 करोड़
2001 - UTI घोटाला, 32 करोड़
2001 - केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला, 1,000
करोड़
2002 - संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला, 600
करोड़
2002 - कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला, 120
करोड़
2003 - स्टाम्प घोटाला, 20,000 करोड़
2005 - आई पि ओ कॉरिडोर घोटाला, 1,000 करोड़
2005 - बिहार बाढ़ आपदा घोटाला, 17 करोड़
2005 - सौरपियन पनडुब्बी घोटाला, 18,978 करोड़
2006 - पंजाब सिटी सेंटर घोटाला, 1,500 करोड़
2008 - काला धन, 2,10,000 करोड
2008 - सत्यम घोटाला, 8,000 करोड
2008 - सैन्य राशन घोटाला, 5,000 करोड़
2008 - स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र, 95 करोड़
2008 - हसन् अली हवाला घोटाला, 39,120 करोड़
2009 - उड़ीसा खदान घोटाला, 7,000 करोड़
2009 - चावल निर्यात घोटाला, 2,500 करोड़
2009 - झारखण्ड खदान घोटाला, 4,000 करोड़
2009 - झारखण्ड मेडिकल उपकरण घोटाला, 130
करोड़
2010 - आदर्श घर घोटाला, 900 करोड़
2010 - खाद्यान घोटाला, 35,000 करोड़
2010 - बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला, 2,00,000 करोड़
2011 - 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 1,76,000 करोड़
2011 - कॉमन वेल्थ घोटाला, 70,000 करोड़
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ये सब घोटाले कोई विदेशी ने नही,
न ही किसी मुसलमान ने नही किया और न ही
कोई SC ST ने नहीं,
ये सब घोटाले उन्ही तथाकथित उच्चजाति के
देशभक्तों ने किया हैं।
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फिर कहते आरक्षण से देश पीछे जा रहा है
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Monday 2 October 2017

bullet train

88 हजार करोड़ का लोन लेकर बुलेट ट्रेन चलेगी..
यह लोन हम सब लोग मिलकर चुकता करेंगे..
इस लोन का सालाना ब्याज 1680 करोड़ यानी हर महिने का 140 करोड़ ब्याज भरना होगा..
इस अनपढ गंवार प्रधानमंत्री ने नोटबंदी से 3 लाख करोड़ का तो चुना लगाया ही है, उपर से इसने 88 हजार करोड़ लोन लेकर हम सबको 3 साल पिछे ढकेल दिया दिया है..
बोला जा रहा है बुलेट ट्रेन से भारत के शान बढेगी..??
भाईयों कैसे बढेगी शान जब उसकी 98 फिसदी जनता बुलेट ट्रेन से सफर ही नहीं कर पायेगी...
2% लोगों के जरूरत के लिए इतना बढा लोन का बोझ हम सबपर जबरन डाला जाना कहां तक सही है..
अगर शान बढानी ही है, तो पैसा उनपर खर्चा करो जो 6 रू प्रती किलोमिटर के हिसाब से मिसाईल मंगल भेज कर देश का नाम उंचा किया है...
अगर शान बढाना ही है, तो उन युवाओं को भारत में रहकर देशसेवा करना का मौका दो, जो युवा विदेशों में जाकर विदेशी धरती का मान बढा रहा है..
शान बढाने के लिए ऐसे बहुत से उदाहरण है.. लेकिन हमारा प्रधानमंत्री देश में बेमतलब के फैसले लेकर हमारे पैसे डूबाता जा रहा है..
10 घंटे का सफर बुलेट ट्रेन से 3 घंटे में करवाकर कौनसा किसानों और मध्यम वर्ग को फायदा पहुंचाने वाला है..
आलरेडी हमारे पास 10 घंटे का सफर 1 घंटे में करने के लिए हवाई जहाज मौजूद है..
हवाई यात्रा भी 1000 किलोमीटर तक 3000 रूपये वसूलती है, और बुलेट ट्रेन भी इतना ही वसूलेगी..
फिर इस बुलेट ट्रेन की क्या जरूरत..??
जो इंसान सूतियप्पा के लास्ट स्टेज पर हो उसे क्या समझाया जाए और क्या बोला जाये..??
अच्छा लगे तो शेअर करना, कुछ भक्त चोरी छूपे पढ ले तो इस पोस्ट का लिखना सार्थक होने जैसा है..__